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Khargone seat of Madhya Pradesh is the key to power | मध्य प्रदेश की खरगोन सीट के नाम अनोखा रिकॉर्ड

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2023 के विधानसभा चुनावों...- India TV Hindi

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2023 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी और कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर मानी जा रही है।

नई दिल्ली: आजादी के बाद मध्य प्रदेश में अब तक कुल 15 विधानसभा चुनाव हुए हैं और इनमें से 14 बार राज्य में उसी पार्टी की सरकार बनी है, जिसने खरगोन विधानसभा सीट पर कब्जा जमाया। 1972 से लेकर 2018 तक हुए सभी 12 चुनावों में यह सिलसिला बदस्तूर जारी रहा है। देखना दिलचस्प होगा कि इस बार के विधानसभा चुनाव में भी यह क्रम जारी रहता है या नहीं। मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के तहत 17 नवंबर को वोट डाले जाएंगे, जबकि मतगणना 3 दिसंबर को की जाएगी।

इन 3 सीटों के साथ भी जुड़ा है खास रिकॉर्ड


खरगोन के अलावा राज्य की 3 विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जहां पिछले 9 विधानसभा चुनावों में क्षेत्र की जनता ने जिसे चुना, उसी पार्टी की राज्य में सरकार बनी। इनमें बुरहानपुर जिले की नेपानगर सीट, मंडला जिले की निवास सीट और बड़वानी जिले की सेंधवा सीट शामिल है। वर्ष 1977 से लेकर अब तक हुए सभी चुनावों में खरगोन के साथ ही नेपानगर, निवास और सेंधवा सीट के नतीजे भी उसी पार्टी के उम्मीदवार के पक्ष में गए, जिसने सत्ता हासिल की। खरगोन विधानसभा चुनाव के अब तक के इतिहास में सिर्फ एक ही ऐसा मौका आया, जब वहां की जनता ने जिस दल के उम्मीदवार को जिताया, राज्य में उसकी सरकार नहीं बनी।

1956 में सूबे की शक्ल में आया था एमपी

1951 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में ही यह सीट अस्तित्व में आ गई थी। उन दिनों मध्य प्रदेश, मध्य भारत का हिस्सा था। राज्यों के पुनर्गठन के नतीजे में 1956 में मध्य प्रदेश एक राज्य के रूप में अस्तित्व में आया। पहले और दूसरे विधानसभा चुनाव में खरगोन से कांग्रेस के उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की और राज्य में सरकार भी कांग्रेस की ही बनी। उन दिनों रवि शंकर शुक्ल प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। साल 1962 का विधानसभा चुनाव ही ऐसा था, जब निमाड़ अंचल के खरगोन की जनता ने राज्य के मतदाताओं के सियासी मूड के मुताबिक वोटिंग नहीं की।

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1956 में खरगोन में कांग्रेस का कैंडिडेट जीता था और रविशंकर शुक्ल मुख्यमंत्री बने थे।

1962 में जीते थे जनसंघ के कैंडिडेट

1962 के विधानसभा चुनाव में खरगोन की जनता ने जनसंघ के कैंडिडेट भालचंद्र बगडारे को चुनकर विधानसभा भेजा, लेकिन राज्य में कांग्रेस की सरकार बनी और भगवंत राव मंडलोई मुख्यमंत्री पद पर काबिज हुए। इससे पहले भी वह 31 दिनों तक सूबे के मुख्यमंत्री रह चुके थे। मध्य प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री रविशंकर शुक्ल के निधन के बाद मंडलोई को कार्यवाहक मुख्यमंत्री बनाया गया था। साल 1967 और 1972 के विधानसभा चुनावों में कपास की खेती के लिए मशहूर खरगोन जिले की इस विधानसभा सीट (खरगोन) पर कांग्रेस ने कब्जा जमाया और राज्य में कांग्रेस की ही सरकार बनी।

1972 के बाद से सत्ता की चाभी बनी सीट

1972 के बाद हुए सभी विधानसभा चुनावों में भी यह सिलसिला बरकरार रहा कि जिस पार्टी के उम्मीदवार को खरगोन से जीत मिली, उसी पार्टी की सरकार राज्य में सत्ता में आई। आपातकाल के बाद साल 1977 के विधानसभा चुनाव में मध्य प्रदेश में कांग्रेस की बुरी तरह हार हुई। राज्य में जनता पार्टी की सरकार बनी और कैलाश चंद्र जोशी ने प्रदेश की पहली गैर-कांग्रेस सरकार में मुख्यमंत्री पद संभाला। इस चुनाव में भी खरगोन से जनता पार्टी के उम्मीदवार नवनीत महाजन ने कांग्रेस के चंद्रकांत खोड़े को 5,822 मतों से हराया।

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1980 में अर्जुन सिंह मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बने और खरगोन में भी कांग्रेस की जीत हुई थी।

1980, 1985 और 1990 में भी कायम रहा रिकॉर्ड

1980 में विधानसभा भंग होने के बाद हुए चुनाव में एक बार फिर कांग्रेस ने मध्य प्रदेश की सत्ता में वापसी की और अर्जुन सिंह मुख्यमंत्री बने। खरगोन में भी कांग्रेस को जीत मिली और उसके कैंडिडेट चंद्रकांत खोड़े विधानसभा पहुंचे। 1985 के चुनाव में भी खरगोन की जनता ने कांग्रेस को चुना और राज्य में भी कांग्रेस की ही सरकार बनी। वहीं, 1990 के चुनाव के बाद कांग्रेस की सत्ता से विदाई हो गई और सुंदर लाल पटवा के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार बनी। इस चुनाव में भी खरगोन की जनता सत्ताधारी पार्टी के साथ रही। बीजेपी के राय सिंह राठौड़ ने कांग्रेस के चंद्रकांत खोड़े को तकरीबन 25,000 मतों से पराजित किया।

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2003 में बीजेपी ने सत्ता में वापसी की और उमा भारती सूबे की मुख्यमंत्री बनी थीं।

1993 में पहली बार सीएम बने दिग्विजय

1993 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को जीत मिली और दिग्विजय सिंह पहली बार मुख्यमंत्री बने। उनके नेतृत्व में कांग्रेस ने 1998 का विधानसभा चुनाव भी जीता। इन दोनों ही चुनावों में खरगोन में कांग्रेस कैंडिडेट पारसराम बाबूलाल डांडीर विधायक चुने गए। साल 2003 में बीजपी ने सत्ता में वापसी की और फायर ब्रांड नेता उमा भारती राज्य की मुख्यमंत्री बनीं। साल 2008 और 2013 के चुनावों में भी बीजेपी ने परचम लहराया। इन चुनावों में खरगोन की जनता ने बीजेपी के ही उम्मीदवारों को जिताया। साल 2003 में यहां से बीजेपी के बाबूलाल महाजन जबकि 2008 और 2013 में बालकृष्ण पाटीदार को जीत मिली।

2018 में भी खरगोन की जनता ने छोड़ी छाप

2018 में हुए पिछले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने बीजेपी के 15 वर्षों के शासन का अंत किया और फिर से राज्य की सत्ता में लौटी। खरगोन की जनता ने मानो इस बार भी प्रदेश का राजनीतिक मिजाज भांप लिया था। उसने बीजेपी उम्मीदवार को नकार दिया। कांग्रेस के रवि जोशी ने बीजेपी के बालकृष्ण पाटीदार को पटखनी दी। इस चुनाव में जीत के बाद कांग्रेस सरकार का नेतृत्व कमलनाथ के हाथों में आया। हालांकि, उनकी सरकार पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर सकी। ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत के बाद कमलनाथ की सरकार गिर गई और बीजेपी फिर सत्ता में लौटी। शिवराज सिंह चौहान चौथी बार राज्य के मुख्यमंत्री बने। (भाषा)

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Author: Daily Jagran

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