बदरीनाथ हाईवे खोलने में जुटे मजदूरों के ऊपर अचानक भरभराकर बोल्डर गिरने लगे। तेजी से मजदूर अपनी जान बचाने के लिए भागे। गनीमत रही कि सभी मजदूर सुरक्षित हैं। जरा सी देरी मजदूरों की जिंदगी पर भारी पड़ सकती थी।
बीते दिनों हुई बारिश से चट्टानें कमजोर पड़ गई हैं। मंगलवार को सुबह करीब सात बजे चुंगीधार के पास पहाड़ी से बड़ी मात्रा में बोल्डर और मलबा हाईवे पर आ गए, जिससे यहां वाहनों की आवाजाही थम गई। जेसीबी मलबे को हटा रही थी कि पूर्वाह्न 11 बजे इसी स्थान पर चट्टान का बड़ा हिस्सा टूटकर हाईवे पर आ गया। इससे हाईवे का करीब पांच मीटर हिस्सा भी ध्वस्त हो गया।
ऐसे में यहां हाईवे के दोनों तरफ करीब 3000 तीर्थयात्री फंस गए। हाईवे खुलता न देख कुछ तीर्थयात्री आसपास के होटलों में चले गए जबकि अन्य यात्रियों ने वाहनों में ही हाईवे खुलने का इंतजार किया। बीआरओ की कंंप्रेशर मशीनों से बोल्डरों को तोड़ने का काम शुरू हुआ जो मंगलवार रातभर चलता रहा। बीआरओ बुधवार को भी दिनभर बोल्डरों को हटाने में जुटा रहा। वहीं जोशीमठ के एसडीएम चंद्रशेखर वशिष्ठ ने बताया कि जल्द हाईवे खुलने की उम्मीद है। बृहस्पतिवार से वाहनों की आवाजाही शुरू करवा दी जाएगी।
हाईवे खुलने के इंतजार में भटकते रहे
बदरीनाथ धाम और हेमकुंड साहिब की तीर्थयात्रा पर जाने वाले श्रद्धालु दिनभर हाईवे खुलने का इंतजार करते रहे। मगर शाम तक भी हाईवे न खुलने से श्रद्धालुओं में मायूसी रही। श्रद्धालु जोशीमठ बाजार से चुंगीधार तक आते रहे और हाईवे न खुलने पर फिर बाजार की ओर लौटते रहे। यही स्थिति पीपलकोटी की ओर फंसे श्रद्धालुओं की भी रही। कुछ श्रद्धालु जोशीमठ से गौंख गांव तक करीब पांच किलोमीटर की पैदल दूरी तय कर बदरीनाथ धाम और हेमकुंड साहिब पहुंचे। हाईवे के दोनों ओर दिनभर यात्रियों की भीड़ जुटी रही।
वहीं बदरीनाथ हाईवे पर पीपलकोटी से करीब छह किलोमीटर की दूरी पर स्थित पाताल गंगा में भूस्खलन क्षेत्र फिर से सक्रिय हो गया और यहां धूल का गुबार उड़ने लगा। बुधवार दोपहर को बंद हुआ हाईवे शाम तक भी नहीं खोला जा सका। हालांकि यहां एनएचआईडीसीएल की ओर से शाम तक पैदल रास्ता बनाकर आवाजाही शुरू करा दी गई। बुधवार को दोपहर एक बजे अचानक चट्टान से भारी मात्रा में मलबा हाईवे पर स्थित सुरंग के मुहाने पर आ गया। हालांकि जोशीमठ के पास हाईवे अवरुद्ध होने से यहां वाहनों की आवाजाही नहीं हो रही थी। चट्टान के शीर्ष भाग से हुए भूस्खलन के बाद यहां धूल के गुबार देर तक क्षेत्र में उड़ते रहे। पाताल गंगा